|| मंत्र || ॐ गोवर्धनधरं वन्दे गोपालं गोप रुपिणं | गोकुलोत्सवमिशानं गोविन्दं गोपिका प्रियं || ॐ गोवर्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरूपिणम्। गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिकाप्रियम् || गोवर्धन को धारण करनेवाले,गायो की रक्षा करनेवाले, गोवाल का रूप धारण करनेवाले,गोपियों के परमप्रिय परमेश्वर श्री गोविन्द को में नमस्कार करता हूँ | कौण्डिन्येन पुरा प्रोक्तंमिमं मन्त्रं पुनः पुनः | जपेन्मासं नयेद्भक्त्या पुरुषोत्तममाप्नुयात || यह मंत्र कौण्डिन्य ऋषि ने कहा है, यह मंत्र एक महीने तक जप ने से मनुष्य साक्षात् पुरुषोत्तम प्रिय हो जाते है || ( अ.मा.अ.31/29-30 ) || प्रार्थना || गोपाल गोकुल वल्लभे, प्रिय गोप गोसुत वल्लभं । चरणारविन्दमहं भजे, भजनीय सुरमुनि दुर्लभं ॥ घनश्याम काम अनेक छवि, लोकाभिराम मनोहरं । किंजल्क वसन किशोर मूरति, भूरिगुण करुणाकरं ॥ सिरकेकी पच्छ विलोलकुण्डल, अरुण वनरुहु लोचनं । कुजव दंस विचित्र सब अंग, दातु भवभय मोचनं ॥ कच कुटिल सुन्दर तिलक, ब्रुराकामयंक समाननं । अपहरण तुलसीदास, त्रास बिहारी बृन्दाकाननं ॥ गोपाल गोकुल वल्लभे, प्रिय गोप गोसुत वल्...
किसी की महत्ता मानते हुए श्रद्धापूर्वक उसकी पूजा करने की क्रिया या भाव