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अक्टूबर, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

दुर्गा जी की आरती

दुर्गा जी की आरती   मंगल की सेवा सुन मेरी देवा हाथ जोड तेरे द्वार खडे ।  पान सुपारी ध्वजा नारियल ले ज्वाला तेरी भेंट कर ।।  सुन जगदम्बा कर न बिल्म्बा सन्तन को भण्डार भरे ।  सन्तन प्रतिपाल सदा सुखाली जय काली कल्याण करे।।  बुद्धि विधाता तू जगमाता तेरा कारज सिद्ध करे ।  सन्तन चरण कमल का लिया आसरा शरण तुम्हारी आन पे ।। 1 ।।  बरा बरारने सब जग मोइया तरुणी रूप अनूप धरे ।  सन्तन माता होकर पुत्र खिलावे भार्या होकर प्रेम करे || 2 ||  सन्तन सुखदाई दसा सहाई सन्त खड़े जय कार करें ।  सन्तन ब्रह्मा विष्णु महेश सहस फल लिये भेंट तेरे द्वारा खड़े || 3 ||  अटल सिंहासन बैठी माता सिर सोने का छत्र फिरे ।  सन्तन वार शनीचर कुमकुम बरणी जब लोंकड़ को हुक्म करे || 4||  खड्ग त्रिशूल हाथ लिये रक्त बीज को भस्म करे।  सन्तन शुम्भतिशुम्भ पछाड़े माता महिषासुर की पकड़ दले ||5|| आदि अवतार आदि का राजत अपने जन को कष्ट हरे  सन्तन कोप होय कर दानव मारे चण्ड मुण्ड सब चूर करे।।6।।  सौम्य स्वभाव धरो मेरी माता उनकी अरज कबूल करे  सन्तन सिंह पीठ पर चढ...

कुमारी पूजन

कुमारी पूजन श्री दुर्गा देवी को प्रसन्न करने के लिए नवरात्रि में अष्टमी तथा नवमी को कुमारी कन्याओं का अवश्य खिलाना चाहिए इन कुमारीयों की संख्या 9 हो तो अति उत्तम किन्तु भोजन करने वाली कन्यायें 2 वर्ष से कम तथा 10से ऊपर नहीं होनी चाहिए। अष्ट वर्षा भवेद्वगौरी, वर्षा चश्रोरिणी, दस वर्षा भवेत् कन्या ऊर्ध्वे-ऊर्ध्वे रजस्वला । क्रमशः इन सव कुमारियों के नमस्कार मन्य ये हैं।-  1. कुमार्य्ये नमः  2. त्रिमूर्त्ये नमः  3. कल्याण्यै नमः  4. रोहिण्यै नमः  5- कालिकायै नमः  6- चण्किायै नमः  7- शाय्र्ये नमः  8. दुर्गाये नमः  9. सुभद्रायै नमः  कुमारियों में हीनांगी, अधिकांगी, कुरुपा नहीं होना चाहिये। पूजन करने के बाद जब कुमारी देवी भोजन कर लें तो उनसे अपने सिर पर अक्षत छुड़वायें और उन्हें दक्षिणा दें इस तरह करने पर महामाया भगवती अत्यन्न प्रसन्न होकर मनोरथ पूर्ण करती हैं। 

क्षमा प्रार्थना

क्षमा प्रार्थना हे दयामयी मां ! मै आपका कपठी महापापी, छली, महाभिमानी, कामोक्रोध लोभी-कुविचार-गुरूजन, सेवाहीन समस्त दुर्गुण से युक्त कुनुत्र हैं। आपके चरण शरण के अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं है । है अनाथों को शरण देने वाली मां मेरे अपराधों को क्षमा करके अपने चरणों में शरण दीजिये । मेरे समान संसार में कोई अपराधी को हे मां आपके अलावा कोई भी शरणदाता नहीं । हे मां ! मै महा अज्ञानी हूं पूजन-पाठ -जप आदि की विधि नहीं जानता हूं । आपके पूजन आदि में जो भी भूल हुयी हो उसे क्षमा करके स्वीकार कीजै अपकी कृपा से मुझे सिद्धि प्राप्त हो ।

The importance of the seventh chapter of Srimad Bhagavad Gita for liberation from Pitra Dosha | पितृ दोष से मुक्ति के लिए

पितृ दोष से मुक्ति के लिए श्रीमद् भगवद गीता के सातवें अध्याय का महत्व: श्रीमद् भगवद गीता के सातवें अध्याय में पितृ दोष से मुक्ति का रहस्य छिपा है। जब हम श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान नहीं कर पाते हैं, तब भी हम गीता के सातवें अध्याय का पाठ करके अपने पितरों को प्रसन्न कर सकते हैं। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि जो मुझे भजता है और मेरे भक्त हैं, मैं उनकी रक्षा करता हूँ और उन्हें सभी पापों एवं दोषों से मुक्ति दिलाता हूँ। अतः पितृ दोष से मुक्ति के लिए सातवें अध्याय का पाठ अत्यंत लाभदायक है। एक ब्राह्मण से इसका पाठ करवाने से भी फल मिलता है। श्राद्ध या पिंडदान न होने पर भी गीता के इस अध्याय का पाठ हमारे पूर्वजों को शांति देता है और हमें पितृ दोष से मुक्त करता है।