सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

विभिन्न परंपराओं में देवियाँ की महत्वपूर्ण भूमिका

देवी-देवताओं की पूजा विश्वभर में व्याप्त है, और उन्हें विभिन्न धर्मों और पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। इनका प्रतीक होने के साथ-साथ, उन्हें जीवन, प्रकृति, और मानवीय स्थितियों के विभिन्न पहलुओं का प्रतीक माना जाता है। वे प्रेम, शक्ति, ज्ञान, और सामाजिक न्याय के प्रतीक भी होते हैं, जिनका उल्लेख अनेक पुराणों और कथाओं में किया गया है। उनके कार्य और प्रभाव की कहानियां उन्हें शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यक्तित्वों के रूप में चित्रित करती हैं, जो प्राकृतिक और मानव दोनों जगत के लिए महत्वपूर्ण हैं। विभिन्न परंपराओं में देवियाँ एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जो जीवन, प्रकृति, और मानव अनुभव के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती हैं। यहाँ कुछ प्रमुख परंपराओं की देवियों का अवलोकन दिया गया है: प्राचीन ग्रीक और रोमन पौराणिक कथाएँ: एफ़्रोडाइट/वीनस: प्रेम, सौंदर्य और इच्छा की देवी हैं। एफ़्रोडाइट बारह ओलंपियन देवताओं में से एक हैं और वे अक्सर समुद्र से निकलती हुई दिखाई देती हैं। एथेना/मिनर्वा: ज्ञान, युद्ध और शिल्प की देवी हैं। एथेना का जन्म ज़ीउस के सिर से हुआ था, जो पूरी तरह से कवच से सुसज्...

दुर्गा जी की आरती

दुर्गा जी की आरती   मंगल की सेवा सुन मेरी देवा हाथ जोड तेरे द्वार खडे ।  पान सुपारी ध्वजा नारियल ले ज्वाला तेरी भेंट कर ।।  सुन जगदम्बा कर न बिल्म्बा सन्तन को भण्डार भरे ।  सन्तन प्रतिपाल सदा सुखाली जय काली कल्याण करे।।  बुद्धि विधाता तू जगमाता तेरा कारज सिद्ध करे ।  सन्तन चरण कमल का लिया आसरा शरण तुम्हारी आन पे ।। 1 ।।  बरा बरारने सब जग मोइया तरुणी रूप अनूप धरे ।  सन्तन माता होकर पुत्र खिलावे भार्या होकर प्रेम करे || 2 ||  सन्तन सुखदाई दसा सहाई सन्त खड़े जय कार करें ।  सन्तन ब्रह्मा विष्णु महेश सहस फल लिये भेंट तेरे द्वारा खड़े || 3 ||  अटल सिंहासन बैठी माता सिर सोने का छत्र फिरे ।  सन्तन वार शनीचर कुमकुम बरणी जब लोंकड़ को हुक्म करे || 4||  खड्ग त्रिशूल हाथ लिये रक्त बीज को भस्म करे।  सन्तन शुम्भतिशुम्भ पछाड़े माता महिषासुर की पकड़ दले ||5|| आदि अवतार आदि का राजत अपने जन को कष्ट हरे  सन्तन कोप होय कर दानव मारे चण्ड मुण्ड सब चूर करे।।6।।  सौम्य स्वभाव धरो मेरी माता उनकी अरज कबूल करे  सन्तन सिंह पीठ पर चढ...

कुमारी पूजन

कुमारी पूजन श्री दुर्गा देवी को प्रसन्न करने के लिए नवरात्रि में अष्टमी तथा नवमी को कुमारी कन्याओं का अवश्य खिलाना चाहिए इन कुमारीयों की संख्या 9 हो तो अति उत्तम किन्तु भोजन करने वाली कन्यायें 2 वर्ष से कम तथा 10से ऊपर नहीं होनी चाहिए। अष्ट वर्षा भवेद्वगौरी, वर्षा चश्रोरिणी, दस वर्षा भवेत् कन्या ऊर्ध्वे-ऊर्ध्वे रजस्वला । क्रमशः इन सव कुमारियों के नमस्कार मन्य ये हैं।-  1. कुमार्य्ये नमः  2. त्रिमूर्त्ये नमः  3. कल्याण्यै नमः  4. रोहिण्यै नमः  5- कालिकायै नमः  6- चण्किायै नमः  7- शाय्र्ये नमः  8. दुर्गाये नमः  9. सुभद्रायै नमः  कुमारियों में हीनांगी, अधिकांगी, कुरुपा नहीं होना चाहिये। पूजन करने के बाद जब कुमारी देवी भोजन कर लें तो उनसे अपने सिर पर अक्षत छुड़वायें और उन्हें दक्षिणा दें इस तरह करने पर महामाया भगवती अत्यन्न प्रसन्न होकर मनोरथ पूर्ण करती हैं। 

क्षमा प्रार्थना

क्षमा प्रार्थना हे दयामयी मां ! मै आपका कपठी महापापी, छली, महाभिमानी, कामोक्रोध लोभी-कुविचार-गुरूजन, सेवाहीन समस्त दुर्गुण से युक्त कुनुत्र हैं। आपके चरण शरण के अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं है । है अनाथों को शरण देने वाली मां मेरे अपराधों को क्षमा करके अपने चरणों में शरण दीजिये । मेरे समान संसार में कोई अपराधी को हे मां आपके अलावा कोई भी शरणदाता नहीं । हे मां ! मै महा अज्ञानी हूं पूजन-पाठ -जप आदि की विधि नहीं जानता हूं । आपके पूजन आदि में जो भी भूल हुयी हो उसे क्षमा करके स्वीकार कीजै अपकी कृपा से मुझे सिद्धि प्राप्त हो ।

The importance of the seventh chapter of Srimad Bhagavad Gita for liberation from Pitra Dosha | पितृ दोष से मुक्ति के लिए

पितृ दोष से मुक्ति के लिए श्रीमद् भगवद गीता के सातवें अध्याय का महत्व: श्रीमद् भगवद गीता के सातवें अध्याय में पितृ दोष से मुक्ति का रहस्य छिपा है। जब हम श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान नहीं कर पाते हैं, तब भी हम गीता के सातवें अध्याय का पाठ करके अपने पितरों को प्रसन्न कर सकते हैं। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि जो मुझे भजता है और मेरे भक्त हैं, मैं उनकी रक्षा करता हूँ और उन्हें सभी पापों एवं दोषों से मुक्ति दिलाता हूँ। अतः पितृ दोष से मुक्ति के लिए सातवें अध्याय का पाठ अत्यंत लाभदायक है। एक ब्राह्मण से इसका पाठ करवाने से भी फल मिलता है। श्राद्ध या पिंडदान न होने पर भी गीता के इस अध्याय का पाठ हमारे पूर्वजों को शांति देता है और हमें पितृ दोष से मुक्त करता है।

सप्तश्लोकी दुर्गा

  सप्तश्लोकी दुर्गा शिवजी बोले- हे देवि! तुम भक्तोंके लिये सुलभ हो और समस्त कर्मोंका विधान करनेवाली हो । कलियुगमें कामनाओंकी सिद्धि-हेतु यदि कोई उपाय हो तो उसे अपनी वाणीद्वारा सम्यक्रूपसे व्यक्त करो। देवीने कहा—हे देव! आपका मेरे ऊपर बहुत स्नेह है । कलियुगमें समस्त कामनाओंको सिद्ध करनेवाला जो साधन है वह बतलाऊँगी सुन! उसका नाम है 'अम्बास्तुति' । ॐ इस दुर्गासप्तश्लोकी स्तोत्रमन्त्रके नारायण ऋषि हैं, अनुष्टुप् छन्द है, श्रीमहाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती देवता हैं, श्रीदुर्गाकी प्रसन्नताके लिये सप्तश्लोकी दुर्गापाठमें इसका विनियोग किया जाता है। वे भगवती महामाया देवी ज्ञानियोंके भी चित्तको बलपूर्वक खींचकर मोहमें डाल देती हैं ॥ १ ॥ मा दुर्गे ! आप स्मरण करनेपर सब प्राणियोंका भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरुषोंद्वारा चिन्तन करनेपर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं । दुःख, दरिद्रता और भय हरनेवाली देवि ! आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करनेके लिये सदा ही दयार्द्र रहता हो ॥ २ ॥ नारायणी! तुम सब प्रकारका मङ्गल प्रदान करनेवाली मङ्गलमयी हो । कल्याणदायिनी शिवा हो । सब ...

What is SadheSati

  What is SadheSati ? ज्योतिषशास्त्र के अनुसार साढ़े साती तब बनती है जब शनि गोचर में जन्म चन्द्र से प्रथम, द्वितीय और द्वादश भाव से गुजरता है। शनि एक राशि से गुजरने में ढ़ाई वर्ष का समय लेता है इस तरह तीन राशियों से गुजरते हुए यह साढ़े सात वर्ष का समय लेता है जो साढ़े साती कही जाती है। सामान्य अर्थ में साढ़े साती का अर्थ हुआ सात वर्ष छ: मास। Remedies साढ़ेसाती के अनिष्ट प्रभावों को काम करने के उपाय निम्नलिखित है - साढ़े साती की परेशानी से बचने के लिए नियमित हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। इस ग्रह दशा से बचने के लिए काले घोड़े की नाल की अंगूठी बनाकर उसे दाएं हाथ की मध्यमा उंगली में पहनना चाहिए। शनि देव को शनिवार के दिन सरसों का तेल और तांबा भेट करना चाहिए। किसी गरीब व्यक्ति को काले कंबल का दान करें। शिवलिंग पर काले तिल अर्पित करें और जल चढ़ाएं। हर मंगलवार और शनिवार ऊँ रामदूताय नमः मंत्र का जप करें। मंत्र जप की संख्या कम से कम 108 करे। धार्मिक आचरण बनाए रखें और किसी का अनादर न करें। हर शनिवार को शनि के निमित्त तेल का दान करें। तेल दान करने से पहले तेल में अपना चेहरा देख लेना चाहिए। ...