विद्वत्वं च नृपत्वं च न एव तुल्ये कदाचन्। स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते॥
भावार्थ :
विद्वता और राज्य अतुलनीय हैं, राजा को तो अपने राज्य में ही सम्मान मिलता है पर विद्वान का सर्वत्र सम्मान होता है|
स्वगृहे पूज्यते मूर्खः स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः। स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते।।
अर्थात- मूर्ख अपने घर में महत्व पाता है, प्रभु (धनाड्य व्यक्ति) अपने गाँव में और राजा अपने देश में पूजा जाता है। जबकि विद्वान सभी जगहों पर पूजा जाता है।
भावार्थ :
विद्वता और राज्य अतुलनीय हैं, राजा को तो अपने राज्य में ही सम्मान मिलता है पर विद्वान का सर्वत्र सम्मान होता है|
स्वगृहे पूज्यते मूर्खः स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः। स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते।।
अर्थात- मूर्ख अपने घर में महत्व पाता है, प्रभु (धनाड्य व्यक्ति) अपने गाँव में और राजा अपने देश में पूजा जाता है। जबकि विद्वान सभी जगहों पर पूजा जाता है।
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