शिव उपासना में शंख का इस्तेमाल वर्जित माना जाता है। दरअसल भगवान शिव ने शंखचूड़ नाम के असुर का वध किया था, जो भगवान विष्णु का भक्त था। शंख को उसी असुर का प्रतीक माना जाता है। इसलिए शिवजी की पूजा में कभी भी शंख नहीं बजाना चाहिए। [[श्रीमद् भागवतम् स्कंद १० I अध्याय ३४ ]] दैत्यराज दंभ ने श्रीहरि को प्रसन्नकर उनके समान बलवान पुत्र शंखचूड़ प्राप्त किया. आरंभ में शंखचूड़ धर्मवान था. उसने पुष्कर में तप से ब्रह्माजी को प्रसन्न किया व देवताओं से अजेय होने का वर मांगा. ब्रह्माजी ने मनचाहे वर के साथ नारायण कवच भी प्रदान किया. शंखचूड का विवाह साध्वी तुलसी से हुआ. श्रीहरि के आशीर्वाद से जन्मे व ब्रह्मा से वरदान प्राप्त शंखचूड ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया. त्रस्त देवता श्रीहरि की शरण में गए. प्रभु बोले- शंखचूड़ मेरे वरदान से जन्मा है. उसका अंत केवल महादेव ही कर सकते हैं. देवों ने महादेव को कष्ट और श्रीहरि का आदेश बताया तो शिवजी उसके अंत को तैयार हो गए. शिवजी और शंखचूड़ के बीच युद्ध शुरू हुआ. नारायण कवच के अलावा पत्नी तुलसी ने पतिव्रत के प्रभाव से शंखचूड़ को अभेद्य कवच से युक्त कर दिया...
किसी की महत्ता मानते हुए श्रद्धापूर्वक उसकी पूजा करने की क्रिया या भाव