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Mahashivratri Katha - 1



(शिवपुराण )
 पूर्वकाल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था। जानवरों की हत्या करके वह अपने परिवार को पालता था। वह एक साहूकार का कर्जदार था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। उस चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। जिससे उसके मन में शिव के प्रति अनुराग उत्पन्न होने लगा।
शिव कथा सुनने से उसके पाप क्षीण होने लगे। वह यह वचन देकर कि अगले दिन सारा ऋण लौटा दूंगा, जंगल में शिकार के लिए चला गया। शिकार खोजता हुआ, वह बहुत दूर निकल गया। शाम हो गई किन्तु उसे कोई शिकार नहीं मिला तो वह तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़कर रात्रि में जल पीने के लिए आने वाले जीवों का इंतज़ार करने लगा। बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था, जो बिल्वपत्रों से ढंका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला। प्रतीक्षा, तनाव और दिनभर भूखा-प्यासा शिकारी बेल के पत्ते तोड़ता और नीचे फेंक देता। इस प्रकार बिल्बपत्र शिवलिंग पर गिरते गए और चूंकि उसने दिनभर कुछ नहीं खाया था, इसलिए भूख-प्यास से व्याकुल शिकारी का व्रत भी हो गया।

रात्रि के प्रथम प्रहर में एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुँची। चित्रभानु ज्यों ही उसे धनुष-बाण से मारने चला हिरणी बोली, 'मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी। शिकारी को उस पर दया आ गई और उसने हिरनी को जाने दिया। इस दौरान वह तनाव में बेलपत्र तोड़कर नीचे फेकता गया। अतः अनजाने में ही वह प्रथम प्रहर के शिव पूजा का फलभागी हो गया। 

कुछ ही देर बाद एक और हिरणी उधर से निकली। चित्रभानु उसे मारने ही वाला था कि हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया कि हे शिकारी! मैं अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी। शिकारी ने उसे भी जाने दिया। इस प्रकार चित्रभानु तनावग्रस्त बेलपत्र निचे फेंकता रहा जो शिवलिंग गिरते रहे। उस समय रात्रि का दूसरा प्रहर चल रहा था, अतः अनजाने में इस प्रहर में भी उसके द्वारा बेलपत्र शिवलिंग पर चढ़ गए। 

कुछ देर बाद एक और हिरणी अपने बच्चों के साथ तालाब के किनारे जल पीने के लिए आई। जैसे ही उसने हिरनी को मारना चाहा हिरणी बोली, 'हे शिकारी! मैं इन बच्चों को इनके पिता को सौंप कर लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो। हिरणी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर भी दया आ गई। उसने उस हिरनी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में तथा भूख-प्यास से व्याकुल शिकारी अनजाने में ही बेल-वृक्ष पर बैठा बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। रात्रिभर शिकारी के तनाववश बेलपत्र नीचे फेंकते रहने से शिवलिंग पर अनगिनत पर बेलपत्र चढ़ गए। 

सुबह एक मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने ज्यों ही उसे मारना चाहा, वह भी करुण स्वर में बोला हे शिकारी! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों और बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मार दो ताकि मुझे उनके वियोग का दुःख न सहना पड़े। मैं उन हिरणियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है, तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा। शिकारी ने उस हिरण को भी जाने दिया।

सुबह होते-होते उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर अनजाने में चढ़े बेलपत्र के फलस्वरूप शिकारी का हृदय अहिंसक हो गया। उसमें शिव भक्तिभाव जागने लगा थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता और प्रेम के प्रति समर्पण देखकर शिकारी ने सबको छोड़ दिया। इस प्रकार रात्रि के चारों प्रहर में हुई शिव पूजा से उसे शिवलोक की प्राप्ति हुई। अतः भोलेनाथ की पूजा चाहे जिस अवस्था में करें, उसका फल मिलना निश्चित है। यही परम सत्य भी है। 

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