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अक्टूबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भगवान गणपति के 12 नाम

1- सुमुख-अर्थात सुन्दर मुख वाले। 2- एकदन्त-अर्थात एक दांत वाले। 3- कपिल-अर्थात कपिल वर्ण के। 4- गजकर्ण-अर्थात हाथी के कान वाले। 5- लम्बोदर-अर्थात लम्बे पेट वाले। 6- विकट-अर्थात विपत्ति का नाश करने वाले। 7- विनायक-अर्थात न्याय करने वाले। 8- धूम्रकेतु-अर्थात धुये के रंग वाली पताका वाले। 9- गणाध्यक्ष-अर्थात गुणों के अध्यक्ष। 10- भालचन्द्र-अर्थात मस्तक में चन्द्रमा धारण करने वाले। 11- गजानन-अर्थात हाथी के समान मुख वाले। 12- विघ्ननाशन-अर्थात विघ्नों को हरने वाले।

हनुमान मंत्र

- ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय विश्वरूपाय अमित विक्रमाय प्रकटपराक्रमाय महाबलाय सूर्य कोटिसमप्रभाय रामदूताय स्वाहा। मंत्र करने की  विधि :  स्नान के बाद श्री हनुमान की पंचोपचार पूजा यानी सिन्दूर, गंध, अक्षत, फूल, नैवेद्य चढ़ाकर गुग्गल धूप व दीप जलाकर लाल आसन पर बैठ कर जीवन को सफल व पीड़ामुक्त बनाने की इच्‍छा से  हनुमान मंत्र का जप करें व श्री हनुमानजी की आरती करें। किसी भी संकट से बचने और सुरक्षित रहने के लिए हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, सुंदरकांड, रामायण, रामरक्षा स्तोत्र का पाठ करें। हनुमान जन्मोत्सव पर और बाद में साल में एक बार किसी भी मंगलवार को रक्तदान करने से आप हमेशा दुर्घटनाओं से बचें रहेंगे। ' ॐ क्रां क्रीं क्रों स: भौमाय नम :' मंत्र की 1 माला जाप हनुमान जयंती व मंगलवार को करना शुभ होता है। इसी तरह हनुमान जन्मोत्सव पर या मंगलवार को हनुमानजी को देसी घी से बने 5 रोट का भोग पर लगाने से दुश्मनों से मुक्ति मिलती है। यदि व्यापार में वृद्धि प्राप्त करना चाहते हैं तो हनुमान जन्मोत्सव पर सिन्दूरी रंग का लंगोट हनुमानजी को पहनाइए। हनुमान जन्मोत्सव पर मंदिर की छत पर लाल झंडा लगाने स...

मयूरेश स्तोत्र

मयूरेश स्तोत्र : परिवार की सुख-शांति, मानसिक परेशानी, समृद्धि और चारों ओर प्रगति, चिंता, रोग निवारण, भोग एवं मोक्ष  के लिए मयूरेश स्तोत्र का पाठ किसी भी चतुर्थी तिथि से कर सकते हैं।  अंगारक चतुर्थी पर मयूरेश स्तोत्र पढ़ने से इसका फल सहस्त्र गुना बढ़ जाता है।   ब्रह्मा उवाच पुराणपुरुषं देवं नानाक्रीडाकरं मुदा । मायाविनं दुर्विभाव्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ १ ॥ परात्परं चिदानन्दं निर्विकारं हृदि स्थितम् । गुणातीतं गुनमयं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ २ ॥ सृजन्तं पालयन्तं च संहरन्तं निजेच्छया । सर्वविघ्नहरं देवं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ ३ ॥ नानादैत्यनिहन्तारं नानारुपाणि बिभ्रतम् । नानायुधधरं भक्त्या मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ ४ ॥ इन्द्रादिदेवतावृन्दैरभिष्टुतमहर्निशम् । सदसद्व्यक्तमव्यक्तं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ ५ ॥ सर्वशक्तिमयं देवं सर्वरुपधरं विभुम् । सर्वविद्याप्रवक्तारं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ ६ ॥ पार्वतीनन्दनं शम्भोरानन्दपरिवर्धनम् । भक्तानन्दकरं नित्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ ७ ॥ मुनिध्येयं मुनिनुतं मुनिकामप्रपुरकम् । समष्टिव्यष्टिरुपं त्वां मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ ८ ॥ सर्वाज्ञाननिहन्तारं सर्वज्ञानकरं शुच...

श्री संकटा स्तोत्र

 श्री संकटा स्तोत्र  सद्य: सङ्कटतारिणीम् गुणमयीमारक्तवर्णाम् शुभाम् । अक्षस्स्रग्जलपूर्णकुम्कमलं शङ्खं गदां विभ्रतीम् त्रैशल डमरुञ्य खड्गविधृतां चक्राभयाद्यां पराम् ॥१॥ सङ्कटा प्रथम नाम द्वितीयं विजया तथा । तृतीय कामदा प्रोक्तं चतुर्थम् दु:खहारिणी ॥२॥ सर्वाणी पञ्चमं नाम षष्ठं कात्यायनी तथा । सप्तम भीमनयना सर्वरोगहताष्टमम् ॥३॥ नामाष्टकमिद पुण्यं त्रिसन्ध्य श्रद्धयान्वित: । य: पठेत् पाठयेद्वापि नरो मुच्येत सङ्कटात् ॥४॥ ॥ इति श्री सङ्कटास्तोत्र: सम्पूर्ण ॥

महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रम्

महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रम् अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिन नुते गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते। भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१॥ सुरवर वर्षिणि दुर्धर धर्षिणि दुर्मुख मर्षिणि हर्षरते त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिष मोषिणि घोषरते। दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥२॥ अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रिय वासिनि हासरते शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमालय शृङ्गनिजालय मध्यगते। मधुमधुरे मधुकैटभ गञ्जिनि कैटभ भञ्जिनि रासरते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥३॥ अयि शतखण्ड विखण्डित रुण्ड वितुण्डित शुंड गजाधिपते रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते। निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥४॥ अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते। दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते...

श्री हनुमान वडवानल स्तोत्र

श्री हनुमान वडवानल स्तोत्र  विनियोग ॐ अस्य श्री हनुमान् वडवानल-स्तोत्र-मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः, श्रीहनुमान् वडवानल देवता, ह्रां बीजम्, ह्रीं शक्तिं, सौं कीलकं, मम समस्त विघ्न-दोष-निवारणार्थे, सर्व-शत्रुक्षयार्थे सकल-राज-कुल-संमोहनार्थे, मम समस्त-रोग-प्रशमनार्थम् आयुरारोग्यैश्वर्याऽभिवृद्धयर्थं समस्त-पाप-क्षयार्थं श्रीसीतारामचन्द्र-प्रीत्यर्थं च हनुमद् वडवानल-स्तोत्र जपमहं करिष्ये। ध्यान मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं। वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये।। ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते प्रकट-पराक्रम सकल-दिङ्मण्डल-यशोवितान-धवलीकृत-जगत-त्रितय वज्र-देह रुद्रावतार लंकापुरीदहय उमा-अर्गल-मंत्र उदधि-बंधन दशशिरः कृतान्तक सीताश्वसन वायु-पुत्र अञ्जनी-गर्भ-सम्भूत श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर कपि-सैन्य-प्राकार सुग्रीव-साह्यकरण पर्वतोत्पाटन कुमार-ब्रह्मचारिन् गंभीरनाद सर्व-पाप-ग्रह-वारण-सर्व-ज्वरोच्चाटन डाकिनी-शाकिनी-विध्वंसन ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीर-वीराय सर्व-दुःख निवारणाय ग्रह-मण्डल सर्व-भूत-मण्डल सर्व-पिशाच-मण्डलोच्चाटन भूत-ज्वर-एका...

सरस्वती वंदना

सरस्वती वंदना  वर दे, वीणावादिनि वर दे ! प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव भारत में भर दे ! काट अंध-उर के बंधन-स्तर बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर; कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर जगमग जग कर दे ! नव गति, नव लय, ताल-छंद नव नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव; नव नभ के नव विहग-वृंद को नव पर, नव स्वर दे ! वर दे, वीणावादिनि वर दे। - सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृदेवताम्

सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृदेवताम् । देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जना: ॥ वाणी की अधिष्ठात्री उन देवी सरस्वती को प्रणाम करता हूँ, जिनकी कृपा से मनुष्य देवता बन जाता है ।

॥ श्री सरस्वती अष्टोत्तरशतनामावली ॥

  ॥ श्री सरस्वती अष्टोत्तरशतनामावली ॥ ओं सरस्वत्यै नमः । ओं महाभद्रायै नमः । ओं महामायायै नमः । ओं वरप्रदायै नमः । ओं श्रीप्रदायै नमः । ओं पद्मनिलयायै नमः । ओं पद्माक्ष्यै नमः । ओं पद्मवक्त्रायै नमः । ओं शिवानुजायै नमः । ९ । ओं पुस्तकभृते नमः । ओं ज्ञानमुद्रायै नमः । ओं रमायै नमः । ओं परायै नमः । ओं कामरूपायै नमः । ओं महाविद्यायै नमः । ओं महापातकनाशिन्यै नमः । ओं महाश्रयायै नमः । ओं मालिन्यै नमः । १८ । ओं महाभोगायै नमः । ओं महाभुजायै नमः । ओं महाभागायै नमः । ओं महोत्साहायै नमः । ओं दिव्याङ्गायै नमः । ओं सुरवन्दितायै नमः । ओं महाकाल्यै नमः । ओं महापाशायै नमः । ओं महाकारायै नमः । २७ । ओं महाङ्कुशायै नमः । ओं पीतायै नमः । ओं विमलायै नमः । ओं विश्वायै नमः । ओं विद्युन्मालायै नमः । ओं वैष्णव्यै नमः । ओं चन्द्रिकायै नमः । ओं चन्द्रवदनायै नमः । ओं चन्द्रलेखाविभूषितायै नमः । ३६ । ओं सावित्र्यै नमः । ओं सुरसायै नमः । ओं देव्यै नमः । ओं दिव्यालङ्कारभूषितायै नमः । ओं वाग्देव्यै नमः । ओं वसुधायै नमः । ओं तीव्रायै नमः । ओं महाभद्रायै नमः । ओं महाबलाय...

सरस्वती वंदना

सरस्वती वंदना  या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।  या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥  या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।  सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥  अर्थ : जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करें। शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्।  वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌॥  हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्‌।  वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम्‌॥2॥  अर्थ : शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत्‌ में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, ...